एक नए जीवन को दुनिया में लाने की खुशी अनमोल होती है। ऐसे में अगर पता लगे कि गर्भावस्था जुड़वा है, तो गर्भवती होने की खुशी दोगुनी हो जाती है। इस दौरान महिला के जीवन में कई तरह के परिवर्तन आते हैं। ये बदलाव शारीरिक और मानसिक रूप से गर्भवती की सेहत पर असर डालते हैं ।
जुड़वा गर्भावस्था के लक्षण :
जुड़वा गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण भी लगभग सामान्य गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण की तरह ही होते हैं, जैसे मलती, थकान व वजन में परिवर्तन आदि ।
- सामान्य से अधिक उल्टी और मतली
- अधिक भूख लगना
- गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में वजन का अधिक बढ़ना
- स्तनों में अधिक नाजुकता
- गर्भ में जुड़वा बच्चे होने पर महिलाओं का सामान्य रूप से गर्भवती होने के मुकाबले करीब 4.50 किलो वजन बढ़ जाता है।
जुड़वा गर्भावस्था का शिशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करना :
समय से पहले प्रसव : जुड़वा गर्भावस्था के कई मामलों में समय से पहले प्रसव हो सकता है, जो निओनेटल डेथ का कारण बन सकता है।
मालप्रेजेंटेशन जब गर्भाशय में भ्रूण की स्थिति असामान्य हो जाती है, जिससे भ्रूण उल्टा या किसी अन्य पोजीशन में आ जाता है, तो उसे मालप्रेजेंटेशन कहा जाता है।
सिंगल फीटस डिमाइस : जब किसी कारणवश गर्भ में किसी एक शिशु की मृत्यु हो जाती है, तो उसे सिंगल फीटस डिमाइस कहा जाता है। इसके बाद, जीवित शिशु के जिंदा रहने की संभावना उस समय से प्रसव के बीच के समय और गर्भावस्था की उम्र पर निर्भर करती है ।
जन्मजात शारीरिक विकृतियां : जुड़वा गर्भावस्था के कुछ मामलों में शिशुओं के बीच इंटरलॉक ट्विन्स जैसी विकृतियां सामने आ सकती हैं। इंटरलॉक ट्विन्स में दोनों शिशुओं का शरीर आपस में जुड़ा होता है।
ट्विन टू ट्विन ट्रांसफ्यूजन सिंड्रोम : जब एक गर्भनाल में होने के कारण एक भ्रूण की ब्लड सप्लाई दूसरे भ्रूण में होने लगती है, तो इसे ट्विन टू ट्विन ट्रांसफ्यूजन सिंड्रोम कहा जाता है। इसके कारण एक भ्रूण में खून की कमी हो जाती है और दूसरे में जरूरत से ज्यादा खून बढ़ सकता है।
गर्भावस्था में जुड़वा बच्चे होने का पता चलना : जुड़वा गर्भावस्था के बारे में पहली तिमाही में ही पता लगाया जा सकता है। यह कुछ टेस्ट और निदान की मदद से किया जा सकता है :
क्लीनिकल निदान : डॉक्टर स्टेथोस्कोप की मदद से भ्रूण की दिल की धड़कन सुनकर बता सकते हैं कि गर्भाशय में एक भ्रूण है या एक से ज्यादा ।
अल्ट्रासाउंड स्कैन : गर्भावस्था की पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में कितने शिशु पल रहे हैं। साथ ही गर्भावस्था और भ्रूण से जुड़ी अन्य जटिलताओं के बारे में भी पता लगाया जा सकता है ।
डॉपलर हार्टबीट काउंट : यह भी एक प्रकार का अल्ट्रासाउंड हो होता है, जिसमें मशीन की मदद से भ्रूण की दिल की धड़कन सुनी जाती है। इस जांच की मदद से दोनों भ्रूण की धड़कनों को अलग-अलग सुना जा सकता है
एमआरआई : गर्भावस्था और उससे जुड़ी अन्य जानकारी के लिए एमआरआई स्कैन करने की सलाह दी जाती है।
जुड़वा गर्भावस्था में गर्भवती से जुड़ी जटिलताएं :
जुड़वा गर्भावस्था के कारण होने वाले शिशुओं के अलावा गर्भवती महिला को भी कुछ जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है :
उच्च रक्तचाप : जुड़वा गर्भावस्था में गर्भवती महिला को उच्च रक्तचाप होने का खतरा बढ़ सकता है ।
संक्रमण का खतरा : माना जाता है कि जुड़वा गर्भावस्था में गर्भाशय ज्यादा बड़ा होने के कारण गर्भाशय ग्रीवा ज्यादा खुल जाती है। इसके कारण भ्रूण की त्वचा का संपर्क महिला की योनी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से हो सकता है।
एनीमिया : दो भ्रूण होने के कारण महिला के शरीर में मौजूद आयरन और फोलेट का उपयोग ज्यादा होता है, जिस कारण एनीमिया हो सकता है।